देव भूमि उत्तराखण्ड में पंच केदारो में भगवान शिब को साक्षात पांच रूपो में पूजा जाता है

हरेन्द्र नेगी गॉव तक रूद्रप्रयाग
पंच केदारों का महत्व व जानकारी कौन -कौन से केदार हैं कहा- कहा हैं किस रूप में पूजे जाते है।
देव भूमि में भगवान शिव को किस – किस रूप में पूजा जाता है
पंच केदारो में भगवान शिब को साक्षात पांच रूपो में पूजा जाता है देव भूमि उत्तराखण्ड में ।
भगवान शिव को निराकार रूप में पूजा जाता है
देवभूमि में जो ज्योर्तिलिंग है। वे भगवान के अभिन्न अंगों में पूजा जाता है।
ज्योर्तिलिंग यानि पांच केदार
प्रथम केदारनाथ जहां हिमालय में शिव के पृष्ठ यानि पीठ के भाग के दर्शन होते है।
द्धितीय केदार यानि मद्धमहेश्वर भगवान जो मध्य हिमालय में विराजमान है जहां श्रद्धालु शिव के ज्योतिलिंग नाभी के दर्शन करते हैं।
तृतीय केदार यानि विश्व की सबसे उंची चोटि पर विराजमान शिव के ज्येर्तिलिंग के रूप में पूजे जाने वाले भगवान तुंगनाथ जी के दर्शन वाहु /भुजाओं के रूप में पूजे और दर्शन ज्येर्तिलिंग के रूप में किये जाते हैं।
चतुर्थ केदार जो रूद्रनाथ के रूप में विश्वविख्यात है भगवान शिव के पांच अंग के रूप में मुख मण्डल के रूप में ज्येर्तिलिंग के रूप मे ंदर्शन और पूजा की जाती है।
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पंच केदार में पांचवॉ केदार कल्पेश्वर के नाम से विख्यात हैं जो भगवान शिव के सिर पर जटाओं के रूप में ज्येर्तिलिंग के रूप में पूजे जाते है। कहते हैं जब स्वर्ग से पृथ्वी लोक पर गंगा आ रही थी जो प्रवल धारा के रूप में बह रही थी और पृथ्वी पर आने से पहले भगवान शिव ने गंगा को अपने जटाओं में समाहित कर दिया था जो गंगा धरती पर आती है उससे धीरे धीरे पृथ्वी लोग पर शिव ने कल्पजटाओं में धाराण कर समाहित कर दिया था जिससे ज्येर्तिलिंग में कल्पेश्वर के नाम से पूजा जाता है।
द्वितीय केदार, भगवान मद्महेश्वर, उत्तराखंड के पंच केदारों में से एक हैं, जो भगवान शिव के मध्य भाग को समर्पित हैं। यह मंदिर रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है और पांडवों द्वारा निर्मित माना जाता है। मंदिर में भगवान शिव के नाभि रूप की पूजा की जाती है।
महत्व
पंच केदारों में से दूसरा स्थान –
मद्महेश्वर को पंच केदारों में दूसरा महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है,जो मध्य हिमालय में विराजमान है और छ माह भगवान शिव की पूजा हिमालय में होती है और छ माह भगवान शिव की पूजा पंचकेदार गददीस्थल ओमकारेश्वर में होती है जो भगवान शिव के पांच अंगों को समर्पित हैं।
पांडवों द्वारा निर्मित,
मान्यता – मान्यता है कि ये सभी मंदिर देवभूमि के हिमालय में बने हैं। और इन मंदिरां का निर्माण पाण्डवो ं द्धारा किया गया है। बाद में इन मिंदरों जीर्णोद्धार आदि गुरू शंकराचार्य द्धारा किया गया है। माना जाता है कि पांडवों ने इस मंदिर का निर्माण किया था, जिसमें भीम ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
मनोकामना पूर्ति,
मान्यता है कि जो भी श्रद्धालु भगवान शिव को एक लोटा जल से शिव को अर्पित करता है और द्धितीय केदार मद्महेश्वर मंदिर में दर्शन करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।
असीम कृपा ऐसा माना जाता है कि जो व्यक्ति मद्महेश्वर मंदिर में भगवान शिव की नाभि का दर्शन करता है, भगवान शिव प्रसन्न होकर आर्शीवाद प्रदान करते हैं।
स्वर्ग का मार्ग-पांच केदारों के दर्शन मात्र से शिवलोक को प्राप्त किया जा सकता है।
द्धितीय केदार मद्धमहेश्वर भगवान का मंदिर कहां विराजमान है-मंदिर तक कैसें पहॅूचे और –
मध्यहिमालय में विराजमान भगवान मद्धमहेश्वर भगवान शिव का मंदिर है। जो रूद्रप्रयाग जनपद के उखीमठ बिकास खण्ड के गौण्डार गॉव से 15 किलोमीटर बनतोली से आगे पड़ता है। यह क्षेत्र केदारनाथ बन्यजीव अभयारण्य में आता है।
बद्रीकेदार मंदिर समिति द्धारा भगवान शिव की पूजा अर्चना की व्यवस्था मंदिर समिति द्धारा की जाती है। यहां के हक्कूधारी गौण्डार गॉव और रांसी गॉव के लोग है। जो तीर्थ यात्रियों की रहने खाने और ठहरने की व्यवस्था उनके द्धारा की जाती है। मंदिर समिति द्धारा और केदारनाथ के रॉवल द्धारा यहां के पुजारी की नियुक्ति की जाती है। इस मंदिर के पुजारी ठीक जैसे दक्षिणी भारत के केदारनाथ पुजारी जी होते हैं उन्ही में इनकी तैनाती होती है।
भगवान शिव के पांचों स्थान हिमालय में है जो मन को मनमोहक कर लेते है जो भी इन पांचों धामों के दर्शन पुण्य करता हैं वह इन धामों को देखकर अभिभूत हो जाता है। हिमालय के एैसे भू भाग में मंदिर हैं जो भी श्रद्धालु देखता है। आश्चर्य चकित हो जाता है।