निकाय चुनावः-नेताजी प्रत्याशीयों के चेहरे में पहले और अब में लकीरें खिचने लगी हैं।

निकाय चुनावः-
प्रत्याशीयें के चेहरे में पहले और अब में लकीरें खिचने लगी हैं।
जोश और होश में एक महिने में प्रत्याशीयों को दिन में तारे नजर आने लगे है।
कुछ तो कह रहे हैं कि छोले बिक गये तो कुछ कह रहे हैं लम्बा समय दे दिया,
शुरू – शुरू में जो आदरी खादरी की थी तब बोटर कह रहे थे हम तुम्हारे साथ है लेकिन अब तन-मन -धन कम हो गया तो बोटर भी एक को छोडकर दूसरे दल में शामिल होने लगे है जिस पार्टी में पहले खूब दिखाई दे रहे थे अब कम ही कम दिखाई दे रहे हैं।
प्रचारकों की प्रविश न होने के कारण किसी ने साथ छोड दिया तो कोई दूसरी पार्टी के नेताओं के साथ शामिल हो गये।
पहले और अब में वो जोश और खरोश नहीं दिखाई दे रहा है, प्रचार करने वालों में और नेता जी में। दिन भर थके हुए बैल की तरह दिन भर हल लगाकर आते है थकी हुई बैलों की जोडी वैसे ही हालत है नेता जी की फिर कल की भी चिन्ता प्रोग्राम सेट करना है।
इन दिनों नेता जी सबकी दहलीज में पहॅूच रहे हैं तुम ही हो माई बाप, किसी से आर्शीवाद ले रहे है तो किसी को आर्शीवाद की मांग करे हैं ते किसी को अपना बडा भाई ,छोटा भाइ,मामा, ताउ, चाची ,चाचा, पूफू जी भाई बहिन का रिश्ता । दूर के रिश्तेदार नजदीक के रिश्तेदारी खूब चल रही है। वो मेरा बोटर है मैं उससे पहले से जानता हॅू। उससे फोन करो, वो हमारे साथ है वो उसके साथ है उसकी इतनी बोट है। इतनी हमको है इतनी उनको है। वो टूट जायेगा। उसको समझाआें न जाने कितने हथकण्डे अपनाने पड़ रहे हैं नेताजी को। नेताजी तो पहले ही जोश में होश खो बैठे नजदीकी भी दूरीयों हो बैठी। जो रोज नेताजी के पास आते थे वो कुछ दिन से दिखाई नहीं दे रहा है। किसने उन पर कब्जा कर दिया। गणित के आकडें लग रहे है जोड़ घटान,े गुणा ,भाग सब कुछ हो रहा हैं आश्वासनों की छडी लग रही है। तुम्ही जीत रहे हो। नेताजी भी 26 तारीख तक आश्वासनों पर टिके हुए है। अब न रात में तारे दिख रहे हैं केवल बोटर ही दिख रहे हैं। बोटर प्रचार करने वाले दिन में शुस्त और रात में चुस्त दिखाई दे रहे है। क्येकि रात में सब कुछ मिल रहा है। नोट, मुर्गा दारू,सबसे अच्छा काम करने की भी सबासी मिल रही है। बोल भी नहीं सकते की तू काम नहीं कर रहा ह,ै पालना है एक महिने तक कुछ भी हो कर्जे में डूब जाये लेकिन मुशीबत जो मोल ले रखी है। उसको तो निभाना है। चाहिये कर्जे में डूब जाउ लेकिन चुनाव आधे रास्ते में नही छोडूगा अब चाहिये कुछ भी हो जाये अब जान हथ्ेली पर रख दी हैं तो फिर क्या करें। मन में नेताजी शोच रहे है कि अब कि बार के बाद कभी भी चुनाव नहीं लडूगा बस इस बार मेरी नया पार लगा देना भगवान के भरोश सब कुछ छोड दिया है। जनता के काम किये हो न किये हो लेकिन चुनाव का जो बुखार था मन ही मन जो काम किये उनको गिना भी रहे है। अब मॉ गगां तू ही मेरी नया पार लगाना। जीत जाउगॉ तो पहले अपना चुनाव में लगाया पैसा वसूल करूगा। फिर जनता का काम करूगा।