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गॉव में अकेली एक बृद्ध महिला,खौफ के साये में जीने को मजबूर।

गॉव में अकेली एक बृद्ध महिला,खौफ के साये में जीने को मजबूर।
70साल की बिमला देवी अकेली रहती हैं गॉव में।
गॉव में दिन रात घूमते हैं गुलदार भालू जंगली जानवर।
अकेले पैदल आ जा नहीं सकते कोई भी इन जंगली रास्तों मे।
हरेन्द्र नेगी की स्पेशल रिर्पोट
स्पेशल रिर्पोट
स्लग- ढिंगनी गॉव में एक अकेली महिला
एंकर–आज हम आपको एक एैसी तस्बीर उस गॉव की दिखाते हैं जहां 15 से 20 परिवार के गॉव में आज एक अकेली महिला रहने को मजबूर है। गॉव से हो गया हैं पूरा पलायन। कौन सुनेगा इनकी पीड़ा देखिये स्पेशल रिर्पोट हरेन्द्र नेगी की ग्राउंड रिर्पोट
बीओं – रूद्रप्रयाग जनपद के अगस्त्यमुनि विकास खण्ड के ढिंगनी गॉव की आज हम एक गॉव का पोस्टमार्डम करने जा रहे है। जहां 15 से 20 परिवार के गॉव में एक अकेली बिमला देवी जीने के लिए संघर्ष कर रही है। गॉव के लोगों ने गॉव छोड दिया है। सुख सुविधाओं के अभाव में आज देश चंॉद पर पहॅूचने की बात कर रहा हैं लेकिन यहां के लोग आज भी सड़क शिक्षा और स्वास्थ्य के और अपने गॉव के लिए पैदल रास्तों की बात कर रहे है। लेकिन सरकारो की उदासीनता के कारण आज पूरा गॉव सुबिधा के अभाव में खाली हो गया। लोग प्रतीक्षा में रहे कि आज ही सड़क गॉव तक पहॅूचेगी लेकिन आजादी के 78 वर्ष बीत चुके सड़क तो नहीं आयी पर गॉव के लोग जरूर गॅाव खाली कर चुके।
वाइट- बिमला देवी बृद्ध महिला ढिंगनी गॉव
बीओं 2- 3 दशक पहले ये गॉव संघर्षो के बाद भी काफी खुशहाली भरा था,गॉव में सभी परिवार निवासरत थे लोगों का आना जाना लगा रहता था संडक,शिक्षा और स्वास्थ्य न होने के बाद भी खुशहाल था लोग अपनी दिन चर्या और जीवन चर्या इसी गॉव में खुशहाली से काट रहे थे खेत खलियान हरे भरे से घर आगंन और गौशालाओं पशुधन खेतीबाडी खूब होती थी घास पतवार पूरा हो जाता था लेकिन संडक की आश में बच्चों की शिक्षा के लिए स्वास्थ्य सुविधा के अभाव में गॉव के एक एक परिवार ने गॉव से पलायन कर दिया। आज भी संडक की आस लगाये हुए है। लेकिन लोकनिर्माण विभाग की उदासीनता के कारण सडक तो नहीं पहॅॅूची पर गांव के लोग शहर में सडक तक पहॅूच गये और गॉव पूरा खाली हो गयी आज इसगांव एक बृद्ध महिला अकेली रहती है। लोगों का कहना है कि आखिर ये महिला कैसे अकेली इस गॉव में और चारों ओर जंगल के बीच मे रह रही है। बडी पीडा है।
महिला का हैं कि हमारा जीवन पूरा यही कट गया बच्चे कोई देहरादून में हैं कोई श्रीनगर में है बच्चे बुलाते है। पर मन अपने गॉव में ही लगता है। शहर की जिन्दगी पसन्द नही आती है कुछ दिन जाती हॅू पर अपना घर अपना गॉव अपना ही होता है। कई कई दिनों तक कोई भी नहीं दिखाई देता आने जाने के लिए रास्ते नही है। बीमार हो जाउंगी तो कहा जाउंगी। अस्पताल भी यहां से 4 किलोमीटर दूर हैं किसी भी प्रकार की सुविधा नही है। जंगल के बीच में गॉव हैं आने जाने के लिए भी रास्ते नहीं है। बडा दुख हैं अगर संडक होती तो गांव के लिए घर आते जाते लेकिन सुविधा ही नही है। तो यहां कोन आयेगा। ये तस्बीर है इस गॉव की और ये पीडा हैं इस गॉव सुनिये इस गॉव की पीडा—
वाइट–लक्ष्मण सिहं रौथाण इस गॉव का निवासी
वाइट- कलम सिहं चौधरी ग्राम ढिंगनी
पीटूसी हरेन्द्र नेगी ग्राम ढिंगनी
दिन रात गांव के आस पास और घर के आस पास भालू और गुलदार का आतंक बना हुआ है। बहुत डर लगाता है पर क्या करूं मन अपने ही गॉव में लगता है ।

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